प्रशासक के एक कदम से चंडीगढ़ नगर निगम में भाजपा हो गई मजबूत
9 मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति पर बवाल
Nominated councillors in chandigarh mc दो राज्यों की राजधानी सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ को जहां विधानसभा बनाने की मांग उठती रहती है, वहीं इसे पंजाब और हरियाणा के वर्चस्व से भी बाहर करने की आवाज बुलंद होती रहती है। शहर से एकमात्र लोकसभा सांसद का निर्वाचन होता है। पिछले दिनों यहां से राज्यसभा सांसद के निर्वाचन की भी मांग पुरजोर तरीके से उठाई गई थी। अब राज्यसभा सांसद का चुनाव बेशक न हो लेकिन नगर निगम में निर्वाचित पार्षदों के बावजूद पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ प्रशासक की ओर से अपने क्षेत्र की ख्यात हस्तियों को मनोनीत करके जनप्रतिनिधियों के साथ मनोनीत पार्षदों को भी महत्व दिया जा रहा है। इसका एकमात्र मकसद राज्यसभा की तर्ज पर सदन में ऐसे अनुभवी और विषय विशेषज्ञों को निगम के सदन का हिस्सा बनाना है, जोकि अपने सुझाव और सलाह से जन सेवा को और प्रभावी बना सकें। हालांकि इस बार 9 मनोनीत पार्षदों को लेकर निगम में जैसा विवाद देखने को मिल रहा है, वह अभूतपूर्व है।
आप ने जीती थीं 14 सीटें
बीते वर्ष 24 दिसंबर को जब नगर निगम चुनाव हुए तो उनमें आम आदमी पार्टी ने सर्वाधिक 14 सीटें जीत कर भाजपा के मंसूबों को धराशाई कर दिया था। उस समय यह तय था कि नगर निगम का मेयर आप का निर्वाचित पार्षद ही बनेगा, हालांकि फिर सत्ता का खेल कुछ ऐसा चला कि भाजपा ने 12 पार्षदों के बावजूद मेयर की कुर्सी पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया। इस चुनाव में 8 सीट जीतने वाली कांग्रेस ने हिस्सा ही नहीं लिया था और अकाली दल के एक पार्षद ने भी मेयर के मतदान से किनारा कर लिया था। वहीं एक कांग्रेस पार्षद भाजपा में शामिल हो गई और आप के एक पार्षद का वोट खारिज हो गया। ऐसी स्थिति में भाजपा की पार्षद सरबजीत कौर मेयर बेशक बन गईं, लेकिन उनकी चुनौतियां अभी और बढऩे वाली थी। सियासी उधेड़बुन में भाजपा अपना मेयर तो बनवा ले गई लेकिन अब सदन में न विपक्ष का मुकाबला करने के लिए न तो उसके पास पर्याप्त संख्या बल है और न ही प्रस्ताव पर मुहर लगवाने के लिए पार्षद।
असली राजनीतिक खेल यहीं से शुरू
वास्तव में असली खेल यहीं से शुरू होता है। पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित का जहां पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार के साथ अनेक अवसरों पर टकराव सामने आ चुका है, वहीं भाजपा की केंद्र सरकार की नीतियों के रक्षार्थ उन्हें काम करते देखा गया है। अपने पसंदीदा राजनेता को बतौर राज्यपाल नियुक्ति इसलिए ही दी जाती है, ताकि वह राजनीतिक निर्णयों को लेने के दौरान केंद्र सरकार के मनमुताबिक कार्य कर सकें। चंडीगढ़ में 9 मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति में जिस प्रकार के आरोप लग रहे हैं, वे कहीं न कहीं उसी राजनीतिक मकसद पर सवाल उठा रहे हैं, जिसके मूल में चंडीगढ़ में भाजपा को ज्यादा मजबूत करने का प्रयोजन निहित है।
अब भाजपा पार्षदों की संख्या हुई 23
इन 9 मनोनीत पार्षदों को भाजपा का बताया जा रहा है। हालात ऐसे बने हैं कि आप पार्षद इन नियुक्तियों का विरोध कर रहे हैं वहीं मनोनीत पार्षद हैं कि अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए भाजपा के साथ खड़े हो रहे हैं। मनोनीत पार्षदों को लेकर पहले भी निगम में विवाद की स्थिति रही है, लेकिन इस बार जैसी स्थिति पहले नहीं रही। क्योंकि इस बार मनोनीत की बहुसंख्या एक ही पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाली हस्तियों की है। भाजपा के निर्वाचित पार्षदों की संख्या इस समय 14 है, वहीं 9 मनोनीत पार्षदों का साथ भी मिलने से यह संख्या 23 हो जाती है। हालांकि यह और बात है कि मनोनीत पार्षदों के पास वोटिंग का अधिकार नहीं है। हालांकि अब भाजपा के रणनीतिकार अगर इसकी गुंजाइश भी तलाश रहे हैं कि बेशक मेयर चुनाव में उन्हें वोट का अधिकार नहीं है, लेकिन सदन की बैठक में प्रस्ताव पास करने और खारिज करने का अधिकार उन्हें प्राप्त हो जाता है तो यह भाजपा के लिए और फायदे की बात हो जाएगी।
सांसद मनीष तिवारी की माता के मनोनयन का भी उठा मुद्दा
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्षदों गुरप्रीत सिंह गापी और जसबीर सिंह ने यह आरोप लगाया है कि पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ प्रशासक ने इन मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति में पंजाब म्युनिसिपल एक्ट 1976 (एक्सटेंड एंड इंप्लीमेंट टू चंडीगढ़ एक्ट 1994) का उल्लंघन किया है। उनका कहना है कि वे किसी फील्ड के विशेषज्ञ नहीं हैं, हालांकि पहले भी अनेक बाद ऐसी नियुक्तियां हुई हैं। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी की माता अमृत तिवारी को मनोनीत किए जाने का भाजपा की ओर से मसला उठाया गया। कहा गया कि कांग्रेसी होने के नाते उन्हें मनोनीत पार्षद बनाया गया, उनकी निजी योग्यता के लिए नहीं।
बेशक, यह मामला और राजनीतिक तूल ले लेकिन अब यह तय है कि सदन में भाजपा के निर्वाचित पार्षदों को मनोनीत पार्षदों का भरपूर साथ मिलेगा। एक मनोनीत पार्षद ने तो कहा भी कि अब हमें झेलने की आदत डाल लो, यानी आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा के बीच यह जंग अब और तेज होने के आसार हैं। साल 2024 के आम चुनाव की आहट चंडीगढ़ में भी सुनने को मिलने लगी है, इस वर्ष के आखिर में मेयर के चुनाव में किसका डंका बजेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।